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वाम सवैया




वाम सवैया

      मापनी-

121 121 121 121,121 121 121 122


बहार बने नित नूतन हो चलते रहना सब को सुख देना।

अवश्य करो अति उत्तम कृत्य निसर्ग बने दुख को हर लेना।


सनातन भाव अमर्त्य बने विषयी रस त्याग अमी रस देना।

सुहाग-स्वभाव बने सब के कर चूम सदा अपना कर देना।


कुशासन दुष्ट अपावन को अविलम्ब उखाड़ खड़ा नित फेंको।

कुशासन मानववाद नहीं इस का अरि मस्तक काटत फेंको।


सदा यह चोर बना चलता इस को पटको झटको नित फेंको।

कुदृष्टि कुवृत्ति कुकर्म कुभाग्य कुचाल कुदृश्य कथानक फेंको।





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2 Comments

Renu

25-Jan-2023 03:58 PM

👍👍🌺

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Mahendra Bhatt

25-Jan-2023 08:31 AM

Nice

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